मोदी और ट्रंप के रिश्तों में खटास का भारत पर असर: एक गहन विश्लेषण
प्रस्तावना
भारत और अमेरिका के बीच पिछले दो दशकों में रिश्ते लगातार मज़बूत होते रहे हैं। चाहे रक्षा समझौते हों, व्यापारिक रिश्ते हों या फिर तकनीकी सहयोग—हर स्तर पर दोनों देशों की साझेदारी गहराती रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच शुरुआती दौर में बने व्यक्तिगत समीकरणों ने इस रिश्ते को और नज़दीक दिखाया। “Howdy Modi” और “Namaste Trump” जैसे कार्यक्रमों ने यह संदेश दिया था कि दोनों नेता व्यक्तिगत रूप से भी बेहद अच्छे संबंध रखते हैं।
लेकिन हाल के दिनों में जिस तरह से इन रिश्तों में खटास की खबरें सामने आई हैं, उसने भारत की विदेश नीति, अर्थव्यवस्था और वैश्विक कूटनीतिक स्थिति पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं। सवाल यह है कि अगर मोदी और ट्रंप के रिश्ते खराब होते हैं तो इसका भारत पर क्या असर पड़ेगा? इस लेख में हम इसी पहलू की गहराई से पड़ताल करेंगे।
तनाव की वजहें
रिश्तों में आई खटास के पीछे कई कारण हैं।
- व्यापारिक नीतियाँ
अमेरिका ने हाल में भारत के कई निर्यात उत्पादों पर भारी शुल्क लगा दिए हैं। इसका सीधा असर भारतीय उद्योगों पर पड़ा है। खासकर टेक्सटाइल, लेदर, ज्वेलरी और फूड प्रोसेसिंग जैसे क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। - ऊर्जा नीति और रूस संबंध
भारत रूस से सस्ते दामों पर कच्चा तेल खरीदता रहा है। अमेरिका चाहता है कि भारत रूस से दूरी बनाए, लेकिन भारत अपनी ऊर्जा सुरक्षा से समझौता करने को तैयार नहीं है। यही अमेरिका और भारत के बीच सबसे बड़ा टकराव का बिंदु बन गया है। - रणनीतिक स्वायत्तता की नीति
भारत हमेशा से “नॉन-अलाइनमेंट” और बाद में “स्ट्रेटेजिक ऑटोनॉमी” की नीति पर चलता रहा है। यानी अमेरिका और पश्चिमी देशों के दबाव में पूरी तरह नहीं झुकना और रूस व चीन जैसे देशों के साथ भी संवाद बनाए रखना। यह नीति ट्रंप को खटकती रही है। - घरेलू राजनीति का असर
अमेरिका की आंतरिक राजनीति भी इसमें अहम भूमिका निभा रही है। ट्रंप अपने वोट बैंक को लुभाने के लिए भारत को “हार्ड डीलिंग पार्टनर” के रूप में प्रस्तुत करना चाहते हैं। वहीं भारत में मोदी सरकार घरेलू राजनीति में दिखाना चाहती है कि वह किसी भी वैश्विक दबाव में नहीं आती।
भारत पर असर
1. आर्थिक प्रभाव
अमेरिकी टैरिफ का सीधा असर भारत की निर्यात-आधारित अर्थव्यवस्था पर दिख रहा है। अमेरिका भारत का सबसे बड़ा निर्यात बाजार है। लाखों छोटे कारोबारी, किसान और श्रमिक अमेरिकी बाजार पर निर्भर हैं। अगर वहां निर्यात घटेगा, तो इसका असर रोजगार और आय दोनों पर पड़ेगा।
- टेक्सटाइल और गारमेंट उद्योग: अमेरिका भारत के परिधान निर्यात का लगभग 25% खरीदता है। शुल्क बढ़ने से प्रतिस्पर्धी देश जैसे बांग्लादेश और वियतनाम को फायदा होगा।
- ज्वेलरी और जेम्स: भारत का डायमंड कटिंग और ज्वेलरी उद्योग अमेरिकी ग्राहकों पर बहुत निर्भर है। यह उद्योग पहले से ही मंदी की मार झेल रहा है।
- फूड और सीफूड एक्सपोर्ट: झींगा और अन्य समुद्री खाद्य पदार्थों के निर्यात पर सबसे बड़ा झटका पड़ा है।
GDP पर इसका असर साफ दिखाई देगा। अगर यह तनाव लंबे समय तक चला तो भारत की विकास दर 1-1.5% तक घट सकती है।
2. रोजगार पर असर
भारत के श्रम-प्रधान उद्योग सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं। टेक्सटाइल, लेदर और ज्वेलरी सेक्टर मिलकर करोड़ों लोगों को रोजगार देते हैं। इन सेक्टरों में छंटनी और उत्पादन घटने का खतरा बढ़ रहा है। बेरोजगारी पहले से ही एक गंभीर समस्या है, और यह स्थिति और खराब हो सकती है।
3. विदेशी निवेश
अमेरिकी निवेशक भारत को लेकर सतर्क हो सकते हैं। अगर अमेरिका और भारत के रिश्ते बिगड़ते हैं, तो अमेरिकी कंपनियाँ अपने निवेश योजनाओं पर पुनर्विचार कर सकती हैं। इससे भारत की स्टार्टअप इकॉनमी और तकनीकी सेक्टर पर भी असर पड़ेगा।
4. कूटनीतिक असर
अमेरिका भारत के लिए सिर्फ व्यापारिक साझेदार नहीं, बल्कि एक रणनीतिक सहयोगी भी है। रक्षा सौदों, इंडो-पैसिफिक स्ट्रेटेजी, क्वाड जैसे मंचों पर भारत और अमेरिका साथ खड़े होते रहे हैं। अगर रिश्ते खराब होते हैं, तो इन मंचों की उपयोगिता पर भी असर पड़ेगा।
5. चीन और पाकिस्तान फैक्टर
अमेरिका के साथ रिश्तों में खटास आने का सीधा फायदा चीन और पाकिस्तान उठाने की कोशिश करेंगे। चीन भारत को अलग-थलग करने की रणनीति अपनाएगा, वहीं पाकिस्तान अमेरिका को अपने पक्ष में करने की कोशिश करेगा।
भारत के लिए अवसर
हर संकट के साथ अवसर भी आते हैं। भारत इस स्थिति को अपने पक्ष में बदल सकता है, अगर सही रणनीति अपनाई जाए।
- नए बाजारों की खोज
भारत को यूरोप, अफ्रीका, दक्षिण-पूर्व एशिया और लैटिन अमेरिका जैसे बाजारों पर ध्यान देना होगा। अगर अमेरिका में दबाव है, तो इन क्षेत्रों में भारत अपनी पकड़ मज़बूत कर सकता है। - मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत
यह संकट भारत को अपने घरेलू उत्पादन और खपत पर जोर देने का मौका देता है। इससे दीर्घकाल में भारत की आर्थिक स्वायत्तता बढ़ेगी। - रणनीतिक स्वायत्तता को मजबूती
भारत को एक ऐसे देश के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है, जो किसी एक शक्ति-ध्रुव पर निर्भर नहीं है, बल्कि सबके साथ संतुलन बनाए रखता है। यह भारत की वैश्विक छवि को और मजबूत करेगा। - टेक्नोलॉजी और नवाचार
अगर अमेरिकी निवेश में कमी आती है, तो भारत यूरोप, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों के साथ तकनीकी साझेदारी कर सकता है।
राजनीति पर असर
घरेलू राजनीति में भी इस मुद्दे का बड़ा असर होगा। विपक्ष मोदी सरकार पर आरोप लगाएगा कि उसने अमेरिका के साथ रिश्तों को संभालने में नाकामी दिखाई। वहीं सरकार इसे “स्वाभिमान की लड़ाई” के रूप में पेश करेगी। इसका असर चुनावी रणनीति और मतदाता व्यवहार पर भी होगा।
निष्कर्ष
मोदी और ट्रंप के रिश्तों में खटास भारत के लिए एक बड़ी चुनौती है। यह सिर्फ व्यापार तक सीमित नहीं है, बल्कि रणनीतिक, राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर भी असर डाल सकती है। लेकिन भारत के पास विकल्प भी हैं—नए बाजार, नई साझेदारियाँ और घरेलू सुधार।
अगर भारत इस संकट को अवसर में बदलता है, तो यह भविष्य में और मजबूत बनकर उभरेगा। लेकिन अगर नीतियाँ समय रहते नहीं बदली गईं, तो इसका दीर्घकालीन नुकसान उठाना पड़ सकता है।

