बिहार की राजनीति हमेशा से भारत की राजनीति का केंद्र रही है। यहाँ के चुनाव न सिर्फ स्थानीय समीकरणों से तय होते हैं बल्कि पूरे देश की दिशा और विपक्षी राजनीति की ताकत का भी पैमाना बन जाते हैं। 2025 का बिहार चुनाव इस मायने में और भी खास है क्योंकि यह लालू यादव के राजनीतिक जीवन और उनके वारिस तेजस्वी यादव की सियासी यात्रा का निर्णायक मोड़ साबित हो सकता है।
लालू यादव क्या 2025 बिहार चुनाव में कर पाएंगे चमत्कार?
उम्मीद तो है कि इस बार तेजस्वी यादव की सरकार बन जाएगी
प्रस्तावना
बिहार की राजनीति हमेशा से पूरे देश में चर्चा का विषय रही है। यहां के चुनाव केवल सत्ता परिवर्तन का प्रतीक नहीं होते, बल्कि यह समाजिक समीकरण, जातीय राजनीति, और जनआकांक्षाओं का बड़ा मंच बनते हैं। 2025 का बिहार विधानसभा चुनाव इस लिहाज से बेहद अहम माना जा रहा है। वजह साफ है – आरजेडी (राष्ट्रीय जनता दल) के संस्थापक और पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव अब भी बिहार की राजनीति की धुरी बने हुए हैं, और उनके बेटे तेजस्वी यादव को लोग मुख्यमंत्री पद के सबसे मज़बूत दावेदार के रूप में देख रहे हैं।
सवाल यही है कि क्या लालू यादव 2025 के बिहार चुनाव में कोई चमत्कार कर पाएंगे? और क्या वास्तव में इस बार तेजस्वी यादव की सरकार बन सकती है? आइए इस पूरे परिदृश्य का गहराई से विश्लेषण करते हैं।
लालू यादव का राजनीतिक कद और करिश्मा
लालू यादव सिर्फ एक नेता नहीं, बल्कि बिहार की राजनीति में “भावनाओं के प्रतीक” हैं। उन्होंने 1990 के दशक में पिछड़े वर्गों और अल्पसंख्यकों को एक नई राजनीतिक ताकत दी। "भूरा बाल साफ करो" जैसी उनकी नीतियों ने सवर्ण वर्चस्व को चुनौती दी और उन्हें गरीबों का मसीहा बना दिया।
आज भले ही लालू की सेहत पहले जैसी न हो, लेकिन उनकी मौजूदगी अब भी पार्टी कार्यकर्ताओं और जनता में जोश भर देती है। उनके एक बयान से ही चुनावी माहौल में ऊर्जा आ जाती है। यही वजह है कि 2025 में अगर आरजेडी को बढ़त मिलती है तो उसमें लालू फैक्टर अहम भूमिका निभाएगा।
तेजस्वी यादव की नई राजनीति
लालू यादव के करिश्मे के साथ-साथ तेजस्वी यादव की मेहनत और नई सोच ने आरजेडी को और मज़बूत किया है। उन्होंने 2020 के विधानसभा चुनाव में महागठबंधन का नेतृत्व किया और 75 सीटें जीतकर सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी बने। उस चुनाव में तेजस्वी की रैलियों में भारी भीड़ उमड़ी और उन्होंने बेरोज़गारी को बड़ा मुद्दा बनाया।
2025 के चुनाव में तेजस्वी और परिपक्व नज़र आ रहे हैं। वह अब "केवल लालू के बेटे" नहीं बल्कि "युवाओं के नेता" बन चुके हैं। उनकी राजनीति में आक्रामकता के साथ-साथ व्यवहारिकता भी दिख रही है।
बिहार की वर्तमान राजनीति का परिदृश्य
2025 के चुनाव में बिहार का राजनीतिक समीकरण बेहद दिलचस्प है।
- जेडीयू और बीजेपी: नीतीश कुमार के लगातार पाला बदलने से उनकी विश्वसनीयता कमजोर हुई है। बीजेपी अपनी पकड़ बनाए रखने की कोशिश में है लेकिन जातीय समीकरण उसके खिलाफ जा सकते हैं।
- आरजेडी और महागठबंधन: कांग्रेस, वाम दलों और छोटे क्षेत्रीय दलों के साथ मिलकर आरजेडी ने मजबूत गठबंधन तैयार किया है।
- तीसरा मोर्चा: चिराग पासवान और अन्य दल भी अपने-अपने तरीके से समीकरण बिगाड़ने की कोशिश करेंगे।
इस बार का चुनाव नीतीश कुमार बनाम तेजस्वी यादव के बजाय, सीधे-सीधे बीजेपी बनाम आरजेडी के बीच होता दिख रहा है।
जातीय समीकरण और लालू फैक्टर
बिहार चुनाव का सबसे बड़ा पहलू जातीय समीकरण है। लालू यादव ने यादव और मुस्लिम वोट बैंक को हमेशा एकजुट रखा। 2025 में भी यही समीकरण आरजेडी की सबसे बड़ी ताकत है।
- यादव + मुस्लिम + दलित + अति पिछड़ा वर्ग का समीकरण मिल जाए तो आरजेडी बहुमत के करीब पहुंच सकती है।
- बीजेपी और जेडीयू का पारंपरिक वोट बैंक (सवर्ण + कुर्मी + कुछ पिछड़ा वर्ग) अब पहले जैसा एकजुट नहीं रहा।
यही कारण है कि लोग कह रहे हैं कि इस बार तेजस्वी यादव की सरकार बनने की पूरी संभावना है।
बेरोज़गारी और विकास का मुद्दा
2020 के चुनाव में तेजस्वी यादव ने “10 लाख नौकरी” का वादा किया था, जिसने युवाओं को खासा प्रभावित किया। आज भी बेरोज़गारी बिहार का सबसे बड़ा मुद्दा है। लाखों युवा रोज़गार के लिए दिल्ली, पंजाब और मुंबई जैसे राज्यों की ओर पलायन कर रहे हैं।
अगर तेजस्वी यादव बेरोज़गारी और विकास पर ठोस प्लान जनता के सामने रखते हैं, तो उनका वोट बैंक और मजबूत हो सकता है।
लालू यादव की “भावनात्मक अपील”
लालू यादव का एक अलग ही वोट बैंक है जो सिर्फ “लालू के नाम” पर वोट देता है। चाहे जेल हो या बीमारी, उनका करिश्मा कम नहीं हुआ। चुनाव के समय उनकी कुछ रैलियां और भाषण महागठबंधन के लिए गेमचेंजर साबित हो सकते हैं।
चुनौतियां भी कम नहीं
हालांकि आरजेडी और तेजस्वी यादव के सामने कई चुनौतियां भी हैं:
- भ्रष्टाचार के आरोप – विपक्ष बार-बार लालू परिवार पर भ्रष्टाचार के मामले उठाता है।
- गठबंधन में तालमेल – कांग्रेस और वाम दलों के साथ सीट बंटवारा आसान नहीं होगा।
- बीजेपी की चुनावी मशीनरी – बीजेपी के पास संसाधन और रणनीति दोनों का जबरदस्त जाल है।
2025 में क्या वाकई “चमत्कार” होगा?
अगर हम आंकड़ों और मौजूदा राजनीतिक स्थिति का विश्लेषण करें तो तस्वीर साफ है:
- नीतीश कुमार की लोकप्रियता कमज़ोर हुई है।
- बीजेपी अकेले दम पर बिहार में बहुत बड़ी जीत नहीं ला पा रही।
- आरजेडी के पास लालू यादव की “भावनात्मक ताकत” और तेजस्वी यादव की “युवा अपील” दोनों मौजूद हैं।
यानी 2025 में तेजस्वी यादव की सरकार बनना पूरी तरह संभव है। अगर ऐसा होता है तो इसे वाकई बिहार की राजनीति का चमत्कार ही कहा जाएगा, जिसमें लालू यादव की विरासत और तेजस्वी यादव की मेहनत दोनों शामिल होंगी।
निष्कर्ष
लालू यादव का राजनीतिक करिश्मा अब भी बिहार में ज़िंदा है। उनकी मौजूदगी आरजेडी कार्यकर्ताओं को जोश देती है और जनता को भरोसा दिलाती है। दूसरी ओर तेजस्वी यादव ने खुद को एक सक्षम, परिपक्व और युवा नेता के रूप में स्थापित किया है।
इस बार का चुनाव बिहार की राजनीति में निर्णायक साबित हो सकता है। अगर महागठबंधन एकजुट रहा और युवाओं को उम्मीदें मिलीं, तो 2025 में सचमुच तेजस्वी यादव की सरकार बन सकती है।
लालू प्रसाद यादव—जिन्हें कभी "गरीबों की आवाज़", "मसीहा" और "सामाजिक न्याय के नायक" के रूप में जाना गया—आज भले ही स्वास्थ्य और कानूनी वजहों से सक्रिय राजनीति में पीछे हटे हों, लेकिन उनकी छवि और करिश्मा अभी भी बिहार की जनता के बीच गहराई से मौजूद है। दूसरी तरफ, तेजस्वी यादव लगातार अपनी राजनीतिक पकड़ मजबूत कर रहे हैं और विपक्ष को उम्मीद है कि इस बार सत्ता की कुर्सी उनके पास आ सकती है।
तो बड़ा सवाल है: क्या 2025 का बिहार चुनाव लालू यादव और तेजस्वी यादव के लिए चमत्कार लेकर आएगा? क्या तेजस्वी यादव सचमुच मुख्यमंत्री बन पाएंगे?
लालू यादव की राजनीतिक विरासत
लालू यादव बिहार की राजनीति का ऐसा नाम हैं जिसने 90 के दशक में जातीय समीकरणों को बदलकर रख दिया। पिछड़े वर्ग, दलित और मुसलमानों को साथ लाकर उन्होंने "MY समीकरण" (मुस्लिम-यादव) बनाया। इसी के दम पर वे लगातार बिहार की राजनीति में छाए रहे।
उनकी सबसे बड़ी ताकत रही कि उन्होंने ग्रामीण गरीब और वंचित समाज को यह एहसास दिलाया कि उनकी भी कोई राजनीतिक हैसियत है। लालू यादव का यही करिश्मा आज भी RJD (राष्ट्रीय जनता दल) की राजनीति की रीढ़ है।
तेजस्वी यादव की चुनौती और संभावनाएँ
तेजस्वी यादव 2020 के चुनाव में महागठबंधन की तरफ से मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार थे और उन्होंने अप्रत्याशित प्रदर्शन किया। महागठबंधन ने लगभग सत्ता के करीब पहुँचने वाला प्रदर्शन किया था।
2025 में उनके पास और भी बड़े अवसर हैं:
- युवा चेहरा – तेजस्वी यादव 35+ आयु वर्ग के नेता हैं, जो युवाओं के बीच स्वीकार्य चेहरा बन चुके हैं।
- बेरोजगारी मुद्दा – उन्होंने पिछले चुनाव में बेरोजगारी और सरकारी नौकरियों पर फोकस किया, जो युवाओं को खूब भाया।
- लालू यादव की विरासत – पिछड़े वर्ग और मुसलमानों का पारंपरिक वोट बैंक अभी भी RJD के साथ खड़ा है।
2025 चुनाव का समीकरण
1. जातीय राजनीति
बिहार की राजनीति जातीय समीकरणों से ही तय होती है। यादव और मुसलमान वोट RJD की रीढ़ हैं। कुर्मी, कुशवाहा और अन्य ओबीसी वर्गों में भी RJD धीरे-धीरे पैठ बना रहा है।
2. बीजेपी-जदयू गठबंधन
वर्तमान में भाजपा और जदयू साथ मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं। नीतीश कुमार की छवि कमजोर पड़ चुकी है, लेकिन भाजपा के संगठन और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता अभी भी बड़ा फैक्टर है।
3. छोटे दलों का असर
विकासशील इंसान पार्टी (VIP), हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (HAM) और चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) भी 2025 में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।
जनता की उम्मीदें
बिहार की जनता आज भी सबसे बड़ी समस्या रोज़गार और पलायन को मानती है। लाखों युवा हर साल बाहर कमाने जाते हैं। अगर तेजस्वी यादव रोजगार की गारंटी और विकास का ठोस खाका पेश करते हैं, तो वे जनता को भरोसा दिला सकते हैं।
तेजस्वी यादव के पक्ष में तर्क
- युवा और ऊर्जावान नेतृत्व
- बेरोजगारी और विकास पर फोकस
- लालू यादव की करिश्माई छवि और सामाजिक न्याय का ब्रांड
- विपक्षी पार्टियों का एकजुट होना
चुनौतियाँ
- भाजपा का मजबूत संगठन और प्रधानमंत्री मोदी का करिश्मा
- RJD पर "जंगलराज" की छवि
- नीतीश कुमार का अब भी प्रभावी राजनीतिक प्रबंधन
- छोटे दलों का वोट काटने का असर
क्या होगा 2025 में?
राजनीतिक पंडितों का मानना है कि 2025 का बिहार चुनाव बेहद करीबी होगा। यह चुनाव सिर्फ सरकार बदलने का मौका नहीं होगा, बल्कि यह तय करेगा कि लालू यादव की राजनीतिक विरासत सचमुच तेजस्वी यादव के हाथों में सफलतापूर्वक आगे बढ़ पाती है या नहीं।
अगर तेजस्वी यादव बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ्य और विकास का ठोस एजेंडा जनता तक ले जाते हैं, तो संभावना है कि इस बार महागठबंधन सत्ता में आ सकता है।
निष्कर्ष
2025 का बिहार चुनाव सिर्फ सत्ता परिवर्तन की लड़ाई नहीं है, बल्कि यह लालू यादव की विरासत और तेजस्वी यादव की राजनीतिक परिपक्वता की परीक्षा भी है। बिहार की जनता इस बार बदलाव चाहती है। अगर विपक्ष अपनी रणनीति सही रखता है, तो निश्चित रूप से तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुँच सकते हैं।
लालू यादव का करिश्मा और जनता के बीच उनकी छवि अभी भी जिंदा है। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि 2025 में बिहार की राजनीति बड़ा मोड़ ले सकती है और तेजस्वी यादव का समय आ सकता है
